Sadguru Vandna podcast

Aaj bhi aam hain unke jalwe

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साधु! हरि गुरू अंतर नाही।
मो मन एक रहाई।
हरि ही गुरू, गुरू में हरि कहिए
गुरू में हरि समाई।
हरि गुरू में जो अंतर समझे
ते नर नरक गिराई।
साधु! हरि गुरू अंतर नाही।

हरि ही गुरू होए अवतरे
है जीव जगावन आई।
चेतन देव सदा शुद्ध कहिए
छिन्न-भिन्न कुछ नाही,
साधु! हरि गुरू अंतर नाही।

जो जाने सो जाने यह गति,
निज निश्चय यह मन भाई।
आपा छोड़ आप में परखे
तो भ्रम ग्रन्थि मिट जाई।
साधु! हरि गुरू अंतर नाही।

‘देवनाथ’ है शुद्ध सन्यासी
जिन यह बूटी पाई।
‘मानसिंह’ सपने नहीं दूजा
एक रूप दरसाई।
साधु! हरि गुरू अंतर नाही।

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