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"निगाह ए मस्त मिलाई तो मय पिला के उठे;
जहां वो बैठ गए, मयकदा बना के उठे!” _
"सर दीने जो बूंद मिले इक, तो भी जानूं सस्ती।
पिला दे ओ साकी! हरि नाम की मस्ती।।"
जहां वो बैठ गए, मयकदा बना के उठे!” _
"सर दीने जो बूंद मिले इक, तो भी जानूं सस्ती।
पिला दे ओ साकी! हरि नाम की मस्ती।।"
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