पूजा ने बचपन से ही देखा था कि शादी किसी परी-कथा जैसी नहीं होती, खासकर तब जब लड़की को हर बार यह एहसास दिलाया जाए कि वह अपने ही घर में पराई है। उसकी माँ अक्सर कहती थीं—
"बेटी, तेरा असली घर तेरा ससुराल होगा।"
अगले दिन अखबारों की सुर्खियाँ थीं—
"एक लड़की ने चार लड़कों को अकेले सबक सिखाया, बहादुरी की मिसाल!"
सियासत की राह
"लड़कियों के बस की बात नहीं है।"
बाबा की जिद और राजनीति का खेल
"अच्छी लड़की को राजनीति नहीं करनी चाहिए, घर संभालना चाहिए
"मुझे अब किसी मर्द के नाम की जरूरत नहीं, क्योंकि मेरा नाम ही मेरी पहचान है!"
वह अब भी याद करती थी अपनी वह दुआ— "या खुदा! मेरी शादी मत होने देना।"
शायद अल्लाह ने उसकी सुनी थी, क्योंकि अब वह अकेली नहीं थी— पूरा शहर उसका परिवार था!
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