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भारत में करीब 30 से 35 प्रतिशत लोगों के पैर नैचुरल आर्च के बिना होते हैं, यानी उनके पैर पूरी तरह फ्लैट होते हैं. ज़्यादातर लोगों को इसका पता भी नहीं चलता, जब तक कि पैर या टखने में दर्द शुरू न हो जाए. फ्लैट फीट असल में होता क्या है? क्या ये जन्म से होता है या उम्र बढ़ने पर भी विकसित हो सकता है? भारत जैसे देश में, जहाँ लोग ज़्यादातर चप्पल या फ्लैट जूते पहनते हैं, क्या ये समस्या ज़्यादा देखने को मिलती है? क्या फ्लैट फीट कोई गंभीर समस्या है या बस एक शारीरिक भिन्नता? इसके लक्षण क्या हैं? कोई कैसे पहचान सकता है कि उसे फ्लैट फीट है? क्या दर्द या थकान इसका हिस्सा होती है, या ज़्यादातर मामलों में यह बिना लक्षण के रहता है? क्या कोई घरेलू या फिज़ियोथेरेपी एक्सरसाइज़ हैं जो मदद कर सकती हैं? जूतों का इसमें कितना रोल होता है? कौन-से जूते या सोल्स ऐसे लोगों को पहनने चाहिए? क्या बचपन में अगर पहचान ली जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है? फ्लैट फीट वाले लोग खेल-कूद या दौड़ने जैसी गतिविधियाँ कर सकते हैं क्या? क्या इसके लिए सर्जरी भी करनी पड़ती है कभी? अगर हाँ, तो कब? ऐसे सभी सवालों के जवाब जाइए हेलो डॉक्टर में, Dr Somesh Virmani के साथ.
होस्ट : मानव देव रावत
साउंड मिक्स : रोहन
होस्ट : मानव देव रावत
साउंड मिक्स : रोहन
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